बीर बाल दिवस के उपलक्ष्य में संघ ने आयोजित किया बाल पथ-संचलन

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रिपोर्ट – समर सिंह राणा / गाज़ियाबाद। वीर बाल दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित बाल पथ संचलन में गाज़ियाबाद के हरन्दी महानगर के विभिन्न नगरों / खण्डों व ग्रामीण क्षेत्र से हजारों की संख्या में शिशु-बाल स्वयंसेवकों ने अलग-अलग स्थान पर आयोजित पथ संचलन में सहभाग किया। जिसमें बड़ी संख्या में बाल स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश के साथ-साथ कुछ सामान्य वेष भी हिस्सा लिया व गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों के बलिदान को स्मरण किया।

इस बीर बलिदानी सप्ताह का ध्यान रखते हुए विभिन्न वक्ताओं अपने-अपने अनुसार से व्याख्यान किए। इन्दिरापुरम मध्य में हरनंदी महानगर प्रचारक ललित शंकर ने कहा कि आज, हम संस्कृति और इतिहास से संबंधित ऐसे विलक्षण बलिदानों के लिए आश्रय कहते हैं कि हमारे आने वाली पीढ़ियां भी अपने इतिहास को जानें, समझें और सदैव याद रखें कि कैसे हमारे छोटे-छोटे बच्चों का बलिदान हुआ। यह बलिदान विश्व में अपने आप में एक अलग ही इतिहास है, जो हमें सदैव प्रेरित करता है और हमारे देश और संस्कृति के प्रति गर्व और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है।

इसी क्रम में इन्दिरापुरम पश्चिम में मेरठ प्रान्त के सह-प्रचारक विनोद ने इस आयोजन के विषय में विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि 21 से 27 दिसंबर बलिदान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। यह वही सप्ताह है जब सनातन संस्कृति एवं हिंदू धर्म की रक्षा में गुरु गोविंद सिंह जी के चार साहिबजादों का बलिदान हुआ। इसी क्रम में हरनंदी महानगर के विजय नगर क्षेत्र में भी बाल शिशु वर्ग द्वारा पथ संचलन कार्यक्रम का आयोजन हुआ। पथ संचलन के दौरान क्षेत्र वासियों ने फूलों की वर्षा से संघ द्वारा किए गए पथ संचलन का स्वागत सत्कार किया।

गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्र में से दो युद्ध के मैदान में लड़ते लड़ते शहीद हुए और दो को मुगलों ने दीवार में चुन दिया। ऐसे साहिबजादे अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह व फतेह सिंह ने केसरिया की रक्षा में हंसते-हंसते अपना बलिदान दिया। हम यदि हिंदू हैं तो उसमें गुरु गोविंद सिंह जी और चार साहिबजादों का बलिदान छिपा है।

उन्होंने उस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मई 1704 में मुगलों ने आनन्दपुर साहिब को घेर लिया था, उस समय गुरु गोविन्द सिंह वहीं थे। मुगल सैनिक छः महीने तक घेरा डालकर डटे रहे। अंततः गुरु गोविन्दसिंह कुछ सैनिकों को साथ लेकर 21 दिसम्बर की रात्रि में वहां से निकले तो उनको निकलते देख मुगलों ने उनका पीछा किया। बाढ़ के कारण सरसा नदी में पानी बढ़ा हुआ था, जाड़े की रात्रि, सभी उसमें कूद पड़े और पानी में ही युद्ध लड़ते रहे। कुल 43 ही नदी पार कर पाए, जिसमें चालीस खालसा सैनिक और गुरु गोविन्दसिंह एवं उनके दो बड़े बेटे (अजीतसिंह और जुझारसिंह) थे; शेष सभी वीरगति को प्राप्त हुए।

22 दिसम्बर को दोनों बड़े साहिबजादे युद्ध में दुश्मन के सैकड़ों सैनिकों को मार डाला और स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए।

सरसा नदी पार करते समय गुरु गोविन्दसिंह का पूरा परिवार बिछुड़ गया। दो छोटे सा‍हिबजादे 7 वर्ष के जोरावरसिंह और 5 वर्ष फतेहसिंह दादी गुजरी देवी के साथ रह गए थे। माता गुजरीजी एवं दोनों साहिबजादे गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें सरहिन्द के नवाब वजीर खां के सामने ले जाकर माताजी के साथ ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया और फिर कई दिनों तक नवाब और काजी उन्हें दरबार में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए विभिन्न प्रकार के लालच एवं धमकियां देते रहे। वहीं दोनों साहिबजादे गरज कर जवाब देते
'हम अकाल पुर्ख (परमात्मा) और अपने गुरु पिताजी के आगे ही सिर झुका‍ते हैं, किसी और को सलाम नहीं करते। हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जुल्म के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।'

तब वजीर खान ने दोनों को दीवार में जीवित चुनवाने का आदेश दिया।
26 दिसम्बर उन्हें खड़ा करके दीवार चुनवाने का कार्य प्रारम्भ दिया गया। दीवार फतेहसिंह की गर्दन तक पहुँच गई तो यह देख बड़े बेटे की आंखों से आंसू गिरने लगे। छोटे भाई ने पूछा :-

भैया, डर रहे हो क्या?

तब जोरावर ने कहा :-
“नहीं भाई, मैं तुमसे बड़ा हूं, किन्तु देश के लिए बलिदान होने का समय आया तो मुझसे पहले तुम्हारा बलिदान होगा, यह सोचकर आँसू आ गए।”

इस तरह दोनों निर्ममतापूर्वक दीवार में चुने गए और बलिदान हो गए। दोनों वीर बालकों को नमन! करते हुए पथ संचलन करते हुए सभी लोगों ने गुरुद्वारे जाकर अपना मत्था टेकते हुए साहिबज़ादों को श्रद्धांजलि अर्पित की जहाँ कार्यक्रम उपरांत गुरुद्वारे में प्रसाद रूप में लंगर की व्यवस्था की गई जहां पर सभी श्रद्धालुओं ने लंगर चक्खा और इस प्रकार संघ द्वारा प्रायोजित पथ संचलन कार्यक्रम का समापन हुआ।

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